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Friday, March 8, 2013

वो मेरा हो न सका

 प्रस्तुत कविता निराशावादी भावात्मक अभिवक्ति हे. सच तो ये हे की इन्सान की परछाई भी उसका साथ छोड़ देती हॆ...मगर दुःख  ज्यादा तब होता हे जब खुद की परछाई से भी ज्यादा कोई प्यारा उसका  साथ छोड़ दे.....मेरे ये बिखरी सी कविता मेरी उस  इन्सान के हर्दय में चल रहे विचारो का प्रस्तुति  हे.......... :) 


"जो था मेरा,
वो भी मेरा हो न सका I

जश्न की बात थी,
जज्बात   तेद्पाते   थे मगर,
सब देखते तो "रौसा" रो ना सका..

बड़ा खाब था,
उनको बताएँगे हाल ए दिल ,
वो मेरा ही रहा जो खवाब  उनका हो न सका .......

जो था मेरा वो भी मेरा हो न सका,

के   उनसे शिकवा कैशा ?,
क्या गिला !
अकेला छोड़  कर गया ,
हमें तो जो मिला,

जाने कहा खुद से भी ग़ुम हो गया ?
दर्द बस गीत बनकर बह गया !
हर रिश्ता एक रस्ता सा बनकर रह गया ,
कोई नही बताता मेरी मंजिलो  का अब पता I

जो था मेरा वो भी मेरा हो न सका ......".


                                                                      दीपक रौसा

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