मैंने आज तक कभी भी कोई भी ब्लॉग हिंदी में नहीं लिखा था, और ये मेरे लिए एक बहुत बड़े चैलेंज की तरह था की मैं इस ब्लॉग को लिखू, वैसे आप सोच रहे होगे की अचानक से इस अभोध बालक को हिंदी में लिखने की क्या सूझी, तो मैं बता तो हुआ कुछ यू की पिछले सप्ताह मैं अपने एक स्कूल मित्र से मिला, हम दोनों स्कूल में काफी अचे दोस्त थे, पर कॉलेज टाइम में वोह किसी और शाहर में था और मैं यहाँ दिल्ली मैं था, फिर जब वोह यहाँ शिफ्ट हुआ तो हम मिले और अपनी स्कूल की यादो को तजा किया। उसमे से एक ये बात बी निकली की किसको निराला जी कविताये याद है, उसको तो याद थी पर भूल चूका था निराला जी की कविताये। वोह हिंदी में लिखना पढना और हिंदी में सोचना, मैं ये सब भूल चूका हूँ, अब तो हिंदी की कोई बी चीज़ अजीब सी लगती है की ये क्या है।
निराला जी ने हमारे स्कूल के दिनों में काफी ही महतवूर्ण किरदार निभाया था, उनकी कविताये, उनकी जीवनी याद करने का जो अनन्द था वोह फिर कभी नहीं आया, शायद अब तो स्कूल में हिंदी को बाहर की ही भाषा माना जाता है, तभी तो हिंदी की हालत हमारे देश में इतने बुरे है। मैं भी उनमे से एक हो, जो हिंदी को कभी तवझॊ नहीं देते है, हमे बचपन में सिखाया जाता है की इंग्लिश पे धयान दो नहीं तो पीछे रह जाओगे और हिंदी को तो हम टेक इट फॉर ग्रांटेड लेते है, वैसे जो मैंने अभी लिखा है उसमे एक बड़ी ही मुश्किल है, हमने अब इंग्लिश में सोचना भी शुरू कर दिया है, पहले हम सोचते हिंदी में थे और लिखते इंग्लिश में थे और कभी-२ उर्दू भी आ जाती थी हमारी बात चीत मैं, पर अब हम बोलते भी इंग्लिश में है, सोचते भी इंग्लिश में और लिकते तो इंग्लिश में ही है। अगर सायद कोई मुझे ये ब्लॉग मेरे को कॉपी पे लिखने को बोलते तो सायद मैं माना कर देता, पर ये मेरे ट्रांसलेटर की हेल्प से मैं आराम से लिख पा रहा हूँ।
अब तो वैसे भी हिंदी लिखने और समझने वाले भी कम रह गए है , मैंने भी आज तब कभी हिंदी में ब्लॉग लिखने की कोशिश नहीं की थी, पर आज हिंदी में केवल लिख के बहुत कुछ याद आ गया, मेरे हिंदी से नाता क्लास ११ से ख़तम हुआ था, उसके बाद ना मैंने कभी हिंदी की ज्यादा किताबे पढ़ी और ना ज्यादा लिखा कुछ हिंदी में, अब तो हिंदी एक खास तबके की भाषा बन गयी है, वोह जो इंग्लिश में नहीं बोल सकते या पढ़ नहीं सकत।
मैं आगे कोशिश करोगा की अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखता रहो, शायद ये उन दिनों की याद दिलाता रहे जब हम कुछ करने से पहले ये सोचते की ये हमे कैसे लगेगा ना की बाकि सब को कैसे लगेगा
निराला जी ने हमारे स्कूल के दिनों में काफी ही महतवूर्ण किरदार निभाया था, उनकी कविताये, उनकी जीवनी याद करने का जो अनन्द था वोह फिर कभी नहीं आया, शायद अब तो स्कूल में हिंदी को बाहर की ही भाषा माना जाता है, तभी तो हिंदी की हालत हमारे देश में इतने बुरे है। मैं भी उनमे से एक हो, जो हिंदी को कभी तवझॊ नहीं देते है, हमे बचपन में सिखाया जाता है की इंग्लिश पे धयान दो नहीं तो पीछे रह जाओगे और हिंदी को तो हम टेक इट फॉर ग्रांटेड लेते है, वैसे जो मैंने अभी लिखा है उसमे एक बड़ी ही मुश्किल है, हमने अब इंग्लिश में सोचना भी शुरू कर दिया है, पहले हम सोचते हिंदी में थे और लिखते इंग्लिश में थे और कभी-२ उर्दू भी आ जाती थी हमारी बात चीत मैं, पर अब हम बोलते भी इंग्लिश में है, सोचते भी इंग्लिश में और लिकते तो इंग्लिश में ही है। अगर सायद कोई मुझे ये ब्लॉग मेरे को कॉपी पे लिखने को बोलते तो सायद मैं माना कर देता, पर ये मेरे ट्रांसलेटर की हेल्प से मैं आराम से लिख पा रहा हूँ।
अब तो वैसे भी हिंदी लिखने और समझने वाले भी कम रह गए है , मैंने भी आज तब कभी हिंदी में ब्लॉग लिखने की कोशिश नहीं की थी, पर आज हिंदी में केवल लिख के बहुत कुछ याद आ गया, मेरे हिंदी से नाता क्लास ११ से ख़तम हुआ था, उसके बाद ना मैंने कभी हिंदी की ज्यादा किताबे पढ़ी और ना ज्यादा लिखा कुछ हिंदी में, अब तो हिंदी एक खास तबके की भाषा बन गयी है, वोह जो इंग्लिश में नहीं बोल सकते या पढ़ नहीं सकत।
मैं आगे कोशिश करोगा की अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखता रहो, शायद ये उन दिनों की याद दिलाता रहे जब हम कुछ करने से पहले ये सोचते की ये हमे कैसे लगेगा ना की बाकि सब को कैसे लगेगा
No comments:
Post a Comment
Click here to pen you Comment